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    Purapravaha Vol 8 by: Budhrashim, Asha Joshi, Original price was: ₹2,000.00.Current price is: ₹1,800.00.
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    Purapravaha Vol 1 by: Budhrashim, Asha Joshi, Original price was: ₹2,000.00.Current price is: ₹1,800.00.

    भारतीय पुरातत्त्व परिषद्, नई दिल्ली, के द्वारा प्रकाशित पुरातत्त्व िवज्ञान से सम्बन्धित ‘पुराप्रवाह’ नामक वार्षिक पत्रिका देश में यू॰जी॰सी॰ से मान्यता प्राप्त अकेली हिन्दी की सारगर्भित शोधपत्रिका है जो पुरातत्त्व के विषयाें तथा ऐतिहासिक शोधकार्याें से सम्बन्ध रखती है।
    यह वार्षिक पत्रिका विद्वत समीक्षक मण्डल द्वारा अवलोकित होती है तथा इस पत्रिका में प्रकाशित हाेने से पूर्व आलेख काे वरिष्ठ पुरातत्त्ववेत्ताओं एवं उस विषय के विशेषज्ञों को विचारार्थ स्वीकार करने हेतु भेजा जाता है।
    इस पत्रिका का प्रकाशन मूलतः राजभाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी में पुरातत्त्व के साहित्य को मान्यता देने हेतु एक सार्थक व सशक्त माध्यम है तािक देश की युवा पीढ़ी के पुरातत्त्वज्ञों को अन्वेषणपरक शोध-निबन्धों के लेखन काे िहन्दी में िलखने की प्रेरणा िमल सके। इससे आने वाले समय में पाठकांे के पास पुरातत्त्व सम्बन्धित हिन्दी की सामग्री पर्याप्त रूप से होगी, जो विद्यार्थियों को शोधकार्य करने में अत्यंत सहायक िसद्ध होगी और उन्हें अंग्रेज़ी की पत्रिकाओं एवं पुस्तकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
    ‘पुराप्रवाह’ में पुरातत्त्व विज्ञान, इतिहास, अभिलेखिकी, मुद्राशास्त्र, पुरातात्त्विक अन्वेषण, प्रागैतिहासिक युग से सम्बन्धित सामग्री, भारतीय संस्कृति, कला और साहित्य का पुरातत्त्व से अन्यान्योश्रय सामंजस्य जैसे विषयों को समाहित करने का प्रयत्न किया है। इसके अतिरिक्त इस वार्षिक पत्रिका में संग्रहालय-विज्ञान, प्राचीन भारतीय धरोहर, वेद-पुराणों से सम्बद्ध महागाथाओं तथा परम्परागत लोकगाथाओं के लेख भी समािहत करने का प्रावधान रखा गया है।
    हमें आशा और विश्वास है कि यह शोध-पत्रिका शीघ्र ही पुरातात्त्विक जगत् में अपनी पहचान बना लेगी।

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    Purapravaha Vol 2 by: Budhrashim, Asha Joshi, Original price was: ₹2,000.00.Current price is: ₹1,800.00.

    भारतीय पुरातत्त्व परिषद्, नई दिल्ली, के द्वारा प्रकाशित पुरातत्त्व िवज्ञान से सम्बन्धित ‘पुराप्रवाह’ नामक वार्षिक पत्रिका देश में यू॰जी॰सी॰ से मान्यता प्राप्त अकेली हिन्दी की सारगर्भित शोधपत्रिका है जो पुरातत्त्व के विषयाें तथा ऐतिहासिक शोधकार्याें से सम्बन्ध रखती है।
    यह वार्षिक पत्रिका विद्वत समीक्षक मण्डल द्वारा अवलोकित होती है तथा इस पत्रिका में प्रकाशित हाेने से पूर्व आलेख काे वरिष्ठ पुरातत्त्ववेत्ताओं एवं उस विषय के विशेषज्ञों को विचारार्थ स्वीकार करने हेतु भेजा जाता है।
    इस पत्रिका का प्रकाशन मूलतः राजभाषा व राष्ट्रभाषा हिंदी में पुरातत्त्व के साहित्य को मान्यता देने हेतु एक सार्थक व सशक्त माध्यम है तािक देश की युवा पीढ़ी के पुरातत्त्वज्ञों को अन्वेषणपरक शोध-निबन्धों के लेखन काे िहन्दी में िलखने की प्रेरणा िमल सके। इससे आने वाले समय में पाठकांे के पास पुरातत्त्व सम्बन्धित हिन्दी की सामग्री पर्याप्त रूप से होगी, जो विद्यार्थियों को शोधकार्य करने में अत्यंत सहायक िसद्ध होगी और उन्हें अंग्रेज़ी की पत्रिकाओं एवं पुस्तकों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
    ‘पुराप्रवाह’ में पुरातत्त्व विज्ञान, इतिहास, अभिलेखिकी, मुद्राशास्त्र, पुरातात्त्विक अन्वेषण, प्रागैतिहासिक युग से सम्बन्धित सामग्री, भारतीय संस्कृति, कला और साहित्य का पुरातत्त्व से अन्यान्योश्रय सामंजस्य जैसे विषयों को समाहित करने का प्रयत्न किया है। इसके अतिरिक्त इस वार्षिक पत्रिका में संग्रहालय-विज्ञान, प्राचीन भारतीय धरोहर, वेद-पुराणों से सम्बद्ध महागाथाओं तथा परम्परागत लोकगाथाओं के लेख भी समािहत करने का प्रावधान रखा गया है।
    हमें आशा और विश्वास है कि यह शोध-पत्रिका शीघ्र ही पुरातात्त्विक जगत् में अपनी पहचान बना लेगी।

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