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भारतीय भाषा दर्शन (Indian Philosophy of Language)

एक विश्लेषणात्मक दृष्टि (An Analytical Perception) by: Devendra Nath Tiwari

यह पुस्तक भाषा और ज्ञान के गहरे दार्शनिक विश्लेषण को प्रस्तुत करती है। इसमें वाक्यपदीय के विभिन्न खंडों के आधार पर भारतीय दार्शनिक परंपराओं का समीक्षात्मक अध्ययन किया गया है।

Original price was: ₹990.00.Current price is: ₹891.00.

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Details

ISBN: 9788124612514
Year Of Publication: 2025
Edition: 1 st
Pages : xvi, 402
Bibliographic Details : Index, Shabdanukramanika
Language : Hindi
Binding : Hardcover
Publisher: D.K. Printworld Pvt. Ltd.
Size: 22
Weight: 662

Overview

“भाषा भावाभावसाधारण है । सभी ज्ञान, सम्प्रत्यय या विचार भाषानुविद्ध होते हैं और इसीलिए भाषा का विश्लेषण सम्प्रत्यय, ज्ञान, अर्थ या विचार का भी विश्लेषण होता है। मूल्यमीमांसीय (axiological) दृष्टि से ज्ञान परम मूल्य है। बोधमूलक (cognitive) दृष्टि से ज्ञान प्रकाश है, चेतन-प्रकाश है; यह शब्द-प्रकाश है, ज्ञान है जो स्वयं का एवं विषयों का भी प्रकाशक है। भाषा ही ज्ञान अाैर विचारों की निर्धारक है। ध्वन्यात्मक दृष्टि से यह वैखरी शब्द है जो बाह्य पदार्थों का संकेतक तथ स्फोट शब्द की अभिव्यक्ति का हेतु है। अखण्ड शक्तिरूप होने से इसे शब्द कहा जाता है। यह हमारे कर्मों/कर्त्तव्यों का प्रेरक है। तत्त्वमीमांसीय (metaphysical) दृष्टि से यह सत्य, परमार्थ सत्य है और सत्यानुसन्धान का एकमा विषय है। ज्ञान से आत्मैक्य प्राप्त करना मानव जीवन का परम लक्ष्य है।
सभी सम्प्रत्ययात्मक ज्ञान भाषा से प्रकाशित होते हैं और भाषा से अनुविद्ध होते हैं। शब्द का तात्त्विक आधार, शब्द-शक्ति, शक्तिग्रह, भाषा की मूल इकाई, ध्वन्यात्मक शब्द, स्फोट शब्द, अर्थ, अर्थ के प्रकार — मुख्य, गौण तथा नान्तरीयकार्थ — विभिन्न प्रकार के अर्थों के निर्धारण के उपाय, भाषा और अर्थ के बीच पारस्परिक सम्बन्ध, वाक्य–वाक्यार्थ तथा शाब्दबोध, इस पुस्तक के आरम्भिक भाग का प्रमुख प्रतिपाद्य है। वाक्यपदीय खण्ड एक तथा दो की सभी दार्शनिक समस्याओं पर विभिन्न भारतीय सम्प्रदायाें के विचारों का समीक्षापूर्वक निर्णयात्मक विवेचन इस पुस्तक में किया गया है।
वाक्यपदीय के तृतीय खण्ड में विवेचित समुद्देशों यथा जाति पदार्थ, व्यक्ति पदार्थ, सम्बन्ध, साधन, वृत्ति, पुरुष, संख्या, देश, काल, क्रिया की अवधारणाओं पर विभिन्न भारतीय सम्प्रदायाें के विचारों की समीक्षापूर्वक प्रस्तुति इस पुष्तक में की गई है। पुस्तक की भाषा सरल है और प्रस्तुति शाानुसारी होलिस्टिक (holistic) विधा से की गई है। यह पुस्तक अध्येताओं के दार्शनिक ज्ञान की अभिवृद्धि करने तथा भाषा दर्शन के अध्ययन के प्रति उनकी रूचि बढ़ाने में निश्चित रूप सें सफल हाेगी।

Contents

“विषय-सूची
प्रस्तावना xvii
आभार xxxi
प्रथम खण्ड
शब्दाद्वैत, भाषा की तात्त्विक दृष्टि एवं भाषा की मूल इकाई
1. शब्दाद्वैत की अवधारणा Holistic Philosophy of Language: 3
भर्तृहरि के शब्दाद्वैत की व्याख्या-विषयक विभिन्न मतों की समीक्षा 3
प्रत्ययों की भाषानुविद्धता 3
स्वातयाेत्तर व्याख्याकारों के शब्दाद्वैत-विषयक तर्कों की समीक्षा और 4
भर्तृहरि की मूल अद्वय दृष्टि
हरिवृत्ति की विवर्तवादी व्याख्या करने वाले विद्वानाें के मताें की समीक्षा 6
गाैरीनाथ शाी का मत 8
के˚ए˚एस˚अय्यर का मत 9
मेडलीन विअाेर्डा का मत 10
काश्मीर शैव दर्शन एवं कान्ति चन्द पाण्डेय का हरिवृत्ति सम्बन्धी मत 12
अद्वैत की बोध-मीमांसीय समस्या 14
शब्दाद्वैत-विषयक शाब्दिकों का मत 15
भर्तृहरि का शब्दाद्वैत 15
शाब्दबोध नैतिक कर्मों का प्रेरक कारण 17
शब्दाद्वैत (holism) की विभिन्न व्याख्याएं 17
स्फोटवादी अद्वैतवाद (sphoṭa holism) 17
वाक्याद्वैतवाद (sentence holism) 18
पदाद्वैतवाद (word holism) 19
अर्थाद्वैतवाद (meaning holism) 19
ज्ञानाद्वैतवाद (cognitive holism) 20
शब्द भावाभाव साधारण है 20
ज्ञान और ज्ञेय के ज्ञान में भेद 21
2. शब्द-ब्रह्म की अवधारणा का विश्लेषण 23
Analysis of the Concept of Śabda-Brahman
शब्दाद्वैत दर्शन के अनुसार एकम् और अद्वैतम् की व्याख्या 23
एक अनेक का उपसंहार अद्वय में होता है 26
शब्द-ब्रह्म चैतन्यस्वप है 27
शब्द-ब्रह्म की अनादिनिधनम् रूप में व्याख्या 27
ब्रह्म में परिमाण या विस्तार नहीं होता 29
शब्द-ब्रह्म के विवर्तन की व्याख्या 29
शब्द नित्य है 31
शब्द सर्वबीज है 33
मुक्त जीवन का व्यावहारिक मार्ग 34
प्रज्ञा की विवेकावस्था 35
शब्द-वृषभ 35
बोधमूलक दृष्टि से शब्द-ब्रह्म की अवधारणा 37
शाब्द बाेध की दृष्टि से कारणता विचार ः तार्किक विश्लेषण 38
3. शब्द (भाषा) की तात्त्विक दृष्टि 43
Metaphysical Perspective of Language
वाणी के चार स्तर (Four Stages of Language) 44
वैखरी शब्द (Verbal Noises/Articulations) 44
मध्यमा शब्द (Language as Thought) 46
पश्यन्ती शब्द (Consciousness Level of Language) 47
परा शब्द 47
निष्कर्ष 47
4. भाषा की मूल इकाई सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्त 49
Theories Regarding Original Unit of Language 49
“पद प्रकृतिः संहिता” की व्याख्या 49
वर्णवादी सिद्धान्त ः क्या भाषा की मूल इकाई वर्ण है? 50
(Theory of Letters)
पदवाद ः क्या भाषा की मूल इकाई पद है? (Theory of Words) 51
अखण्डवाक्यवाद ः क्या भाषा की इकाई वाक्य है? 53
(Theory of Sentence)
द्वितीय खण्ड
शब्द-ध्वनि, शब्द की शक्तियाँ एवं शब्दार्थ सम्बन्ध एवं वृत्तिविचार
5. ध्वनि-शब्द की अवधारणा का विश्लेषण 57
Analysis of the Concept of Articulate
Utterances/Verbal Noises
शब्द क्या है? 57
पतञ्जलि के अनुसार शब्द की परिभाषा 58
सम्प्रत्ययात्मक शब्द (Word is Concept) 58
ध्वनि-शब्द है 59
ध्वनि के प्रकार 61
प्राकृत ध्वनि 61
वैकृत ध्वनि 62
शब्द-ध्वनियों के तीन स्तर 62
ध्वनियाँ और लिपियां 63
ध्वनियों की उत्पत्ति के तीन सिद्धान्त 63
वायु सिद्धान्त 64
परमाणु सिद्धान्त 65
चेतना या ज्ञान सिद्धान्त 65
ध्वनि-शब्द से स्फोट-शब्द की अभिव्यक्ति के तीन सिद्धान्त 66
जाति या सामान्य के प्रतिमान के आधार पर 66
दीप के प्रकाश के प्रतिमान के आधार पर 67
दर्पण प्रतिबिम्ब के प्रतिमान के आधार पर 67
स्फोट की अभिव्यक्ति में ध्वनि-शब्दों की भूमिका सम्बन्धी तीन मत 68
शब्द-ध्वनियों से मा श्रवणेन्द्रिय का ही संस्कार होता है 68
शब्द-ध्वनियां स्फोट को संस्कारित करती हैं 68
शब्द-ध्वनियां श्रवणेन्द्रियों तथा स्फोट दोनों को संस्कारित करती हैं 69
शब्द-ध्वनि एवं स्फोट के बोध-विषयक तीन सिद्धान्त – क्या 69
इन दोनों का युगपत ज्ञान होता है?
निष्कर्ष 71
6. शब्दशक्तिग्रह Means of Learning the Meaning 72
व्याकरण (Grammar) 73
उपमान (Analogy) 73
कोष (Dictionary) 73
आप्तवाक्य (Word of Reliable Persons) 73
व्यवहार (Observation of the Elder’s Use) 74
वाक्यशेष (Context of the Sentence) 74
विवृति (Derivation and Definition) 74
सिद्धपद सान्निध्य (Juxtaposition) 74
निष्कर्ष (Conclusion) 75
7. शब्द की शक्तियां और अर्थ का विश्लेषण 76
Power of Language and Analysis of Meaning
अर्थ क्या है 76
क्या भाषा और विचार पृथक् होते हैं? 76
क्या भाषा और विचार अभिन्न होते हैं? 77
बाैद्धार्थ जाति है, इस सम्बन्ध में भर्तृहरि का मत 77
शक्ति की अवधारणा 79
क्या शब्द ही शक्ति है? (Śabda is Energy) 80
क्या शब्द में शक्तियां हैं? (Energies in Sabda) 81
न्याय एवं अद्वैत वेदान्त के अनुसार लक्ष्यार्थ के प्रकार 81
जहत् स्वार्था लक्षणा 81
अजहत् स्वार्था लक्षणा 82
जहत्-अजहत् स्वार्था लक्षणा 82
अालंकारिकों का मत : शब्द की तीन शक्तियां 82
अभिधा 82
लक्षणा 82
मुख्यार्थ बाध लाक्षणिक 83
मुख्य अर्थ के समीपी अर्थ से विकल्पन 83
व्यञ्जना 83
शाब्दी या अभिधामूला व्यञ्जना 84
आर्थी या लक्षणामूला व्यञ्जना 84
शब्द-शक्ति सम्बन्धी भर्तृहरि का मत 86
मुख्यार्थ या शाब्दिक अर्थ (Primary Meaning) 86
गौणार्थ अर्थ या विवक्षितार्थ (Intended Meaning) 87
नान्तरीयकार्थ या अविवक्षार्थ (Non-intended Meaning) 87
शब्द के गौण और नान्तरीयक अर्थों के निर्णय के चाैदह उपाय 88
निष्कर्ष 92
8. शब्द एवं अर्थ का सम्बन्ध 93
Relation between Language and Meaning
सम्बन्ध क्या है? 93
सम्बन्ध-विषयक रसेल और विट्गेंस्टाइन के विचारों की समीक्षा 93
शाब्दबोध में ज्ञापक और कारक हेतु 98
वाचक–वाच्य सम्बन्ध 98
सम्बन्ध का लक्षण 99
सम्बन्ध की नित्यता 100
योग्यता सम्बन्ध 101
सम्बन्ध सम्बन्धी न्याय–वैशेषिक मत की समीक्षा 103
समवाय और संयोग सम्बन्ध की समीक्षा 104
अतिव्याप्ति दोष एवं उसका परिहार 105
अव्याप्ति दोष एवं उसका परिहार 105
समवाय सम्बन्ध मानने पर अव्याप्ति दोष का परिहार 105
अपभ्रंशों से शाब्दबोध और सम्बन्ध 107
कार्य–कारण सम्बन्ध 108
बाैद्ध अर्थ काे लेकर शब्दार्थ सम्बन्ध विचारः 109
यमक और पर्यायवाची शब्दों के बुद्ध्यार्थ का निर्धारण 113
बौद्ध सत्ता भावाभावसाधारण होता है 115
सम्बन्ध नित्यता अाैर शब्द की नियतार्थता 115
धर्मकीर्ति द्वारा योग्यता सम्बन्ध की आलोचना का प्रत्याख्यान 116
निष्कर्ष 117
तृतीय खण्ड
स्फाेट की अवधारणा, वाक्य तथा वाक्यार्थ (शाब्दबाेध का विचार)
9. स्फोट की अवधारणा Concept of Sphoṭa 123
स्फाेट का व्युत्पत्तिमूलक अर्थ 124
स्फाेट शब्द का निष्पत्तिमूलक अर्थ 124
क्या मध्यमा शब्द वैयाकरण दर्शन में स्फोट है? 125
स्फाेट का स्वरूप 127
स्फाेट मध्यमा शब्द है 127
स्फाेट अर्थ-प्रकाशक शब्द है 127
स्फाेट जाति-रूप शब्द है 128
स्फाेट सर्वगत है 128
ध्वनि और स्फोट का सम्बन्ध 129
स्फाेट और शब्द-ब्रह्म में भेद 129
स्फाेट के प्रकार 130
स्फाेट के विरुद्ध आपत्तियाँ 132
कुमारिल भट्ट की आपत्तियाँ एवं उनका समाधान 133
जयन्तभट्ट की आपत्तियाँ एवं उनका समाधान 134
10. वाक्य की अवधारणा Concept of Sentence 138
वाक्य के आठ प्रकार के लक्षण (Eight Definition 139
of the Sentence)
आख्यात वाक्य 140
संघात वाक्य 141
क्रम वाक्य 141
संघातवर्तिनी जाति वाक्य 141
आदिपद वाक्य 142
पृथक्सर्वपदंसाकांक्ष वाक्य 142
एकोऽन्वयव वाक्य 142
बुद्धनुसंहृति वाक्य 143
नैयायिकों के अनुसार वाक्य एवं शाब्दबोध 144
वीचीतरंगन्याय 145
कदम्बमुकुलन्याय 145
वाक्य की आवश्यक शर्ते : शाब्दबोध हेतु वाक्य में पद संघात के नियम 146
आकांक्षा (Expectancy) 147
योग्यता (Consistency) 148
सन्निधि या आसत्ति (Contiguity) 148
तात्पर्य (Knowledge of the intention) 149
11. शाब्दबोध (वाक्यार्थ) की अवधारणा 151
Concept of the Sentential Meaning/Verbal Cognition
वाक्यार्थ की अवधारणा 151
शाब्दबोध के सिद्धान्त 152
अभिहितान्वयवाद (Theory of Expression Proceeds- 152
Relation) एवं इसके प्रकार
संसर्ग वाक्यार्थ 152
निराकांक्ष पदार्थ वाक्यार्थ 153
प्रयोजन वाक्यार्थ 153
अभिहितान्वयवाद की समीक्षा 154
अन्विताभिधानवाद (Theory of Relation Proceeds 156
Expression) एवं इसके प्रकार
संसृष्ट वाक्यार्थ 157
क्रिया वाक्यार्थ 158
अन्विताभिधानवाद की समीक्षा 158
प्रतिभा या अखण्ड वाक्यार्थ एवं इसके प्रकार 160
स्वभाव प्रतिभा 165
चरण प्रतिभा 166
योगनिमित्त प्रतिभा 166
अदृष्ट प्रतिभा 166
अभ्यास निमित्ति प्रतिभा 167
विशिष्टोपहित प्रतिभा 167
12. वृत्त्यर्थ विचार The Concept of Complex Formations 169
वृत्तियों के प्रकार 171
समानाधिकरण वृत्ति 172
व्यधिकरण वृत्ति 173
वृत्ति और वाक्य में भेद 174
चतुर्थ खण्ड
अपाेद्धार, भाषा-विश्लेषण एवं अनुवाद
13. भाषा अपोद्धार एवं दार्शनिक विश्लेषण Syntactical (Grammatical) 179
and Philosophical Analysis
अपोद्धार और दार्शनिक विश्लेषण 180
वाक्यार्थ से पदार्थ का अपोद्धार (Grammatical analysis 182
of word-meaning from the sentential meaning)
पदार्थ से पदार्थ का अपोद्धार (Grammatical analysis of word- 182
meaning from the word-meanings)
अपोद्धार का प्रथम पक्ष 183
अपोद्धार का दूसरा पक्ष (Another way to grammatical analysis) 183
प्रत्ययों Suffixes की प्रकृति एवं कार्य 185
(Nature and function of suffices) 185
प्रत्यय वाचक है या द्योतक? 185
दार्शनिक विश्लेषण की समस्या 191
विश्लेषण एक स्व-चेतन क्रिया 194
भाषा से भाषा के विश्लेषण की सम्भावना: समस्या एवं उसका समाधान 195
निष्कर्ष 196
14. अनुवाद की समस्या का विश्लेषण Analysis of the Problem 197
of Translation
अनुवाद के सिद्धान्त 197
भाषा और अर्थ के भेद पर आधारित अनुवाद की समस्या 198
भाषा और विचार के अभेद की अवधारणा में अनुवाद की सम्भावना 200
अनुवाद के अच्छे या बुरे के निर्णय का आधार 204
पंचम खण्ड
पद, पदार्थ (जाति तथा व्यक्ति) एवं पदवादियाें एवं
वाक्यार्थवादियाें के पारस्परिक खण्डनमूलक तर्कांे की समीक्षा
15. पद विचार Concept of Word (Pada) 209
पद का लक्षण 209
पदों के प्रकार सम्बन्धी विभिन्न मत 211
प्रातिपदिक (नाम पद) 212
जयन्तभट्ट के आक्षेप एवं वैयाकरणों का समाधान 215
आख्यात (Verb) 216
उपसर्ग (Prefix) 217
उपसर्ग वाचक हैं या द्योतक? 220
निपात (Particles) 221
कर्मप्रवचनीय (Post-position) 223
16. जाति पदार्थ का विश्लेषण Concept of Word-Meaning: 226
Universal as the Import of Words
जाति पदार्थ 227
सभी पाँच कोटि के शब्दों का अर्थ जाति है 227
नैयायिकों के जातिबाधक तर्क एवं उन तर्कों के खण्डनपूर्वक जाति अर्थ की व्यवस्था 229
जातिबाधक तत्त्व – 230
(i) व्यक्ति का अभेद 230
(ii) तुल्यत्व या पर्यायवाची पदार्थों की पृथक् जाति नहीं होती 231
(iii) जाति संकर 231
(iv) अनवस्था जातिबाधक है 232
(v) रूपहानि जातिबाधक है 232
(vi) असम्बद्ध जातिबाधक है 233
17. द्रव्य या व्यक्ति पदार्थ का विश्लेषण 235
Concept of Word-Meaning: Substance as the
Import of Words
पदाें का अर्थ जाति है या द्रव्य? – इस सम्बन्ध में प्राचीन अाचार्याें का मत 235
द्रव्य अर्थ-सम्बन्धी भर्तृहरि का मत 238
(i) पारमार्थिक द्रव्य 239
(ii) साम्व्यावहारिक द्रव्य 243
सभी शब्दों का अर्थ द्रव्य है 244
जाति और द्रव्य या व्यक्ति दोनों अर्थों को लेकर शब्द की व्याख्या 247
18. पदवादियों एवं अखण्ड वाक्यार्थवादियों के परस्पर खण्डनमूलक 249
तर्कों की समीक्षा
निष्कर्ष 260
षष्ठ खण्ड
गुण, साधन एवं दिक् विचार
19. गुण की अवधारण का विश्लेषण (Concept of the Quality) 263
गुण अाैर द्रव्य का सम्बन्ध 263
वैशेषिकाें के अनुसार गुण विचार 265
गुण-सम्बन्धी महाभाष्यकार पतञ्जलि की अवधारणा 266
भर्तृहरि के अनुसार गुण का लक्षण 271
संसर्गी 272
भेदकम् 272
सव्यापारम् 272
परतम् 273
गुण का कार्य क्या है? 273
पुनः, विशेष क्या है? 276
20. भाषीय व्यवहार में साधन (कारक) की अवधारणा 278
Concept of Accessories in Uses of Language
साधन किसे कहते है? क्या साधन द्रव्य है या द्रव्य की शक्ति? 279
क्रिया भी क्रिया का साधन होती है 283
साधनाें के भेद 284
कर्ता (Nominative case) 284
कर्म (Accusative case) 284
करण (Instrumental case) 286
सम्प्रदान (Dative case) 287
अपादान (Ablative) 288
अधिकरण (Locative case) 292
अधिकरण के तीन भेद 293
शेषाधिकार सम्बन्ध (Genitive case) 295
प्रथमा, द्वितीया आदि विभक्तियां 296
21. दिक् की अवधारणा The Concept of Space 299
भारतीय दार्शनिक सम्प्रदायों में दिक् की अवधारणा 300
शाब्दिकों के अनुसार दिक् की अवधारणा 302
दिक्-शक्ति के अस्तित्व के अनुमान हेतु भर्तृहरि की युक्तियां 304
दिक् के अन्तः-बाह्य की समस्या 313
दिक् के एक अनेक की समस्या 315
सप्तम खण्ड
क्रिया, काल, पुरुष एवं संख्या विचार
22. क्रिया की अवधारणा 319
The Concept of Action/Motion/Duty
लकार का अर्थ 320
क्रिया का अर्थ 320
द्रव्य अर्थ पक्ष से क्रिया का विचार 320
क्या क्रिया का प्रत्यक्ष होता है? 322
भाव और क्रिया में भेद 324
क्रिया का प्रथम लक्षण 324
क्रिया का द्वितीय लक्षण 325
जाति अर्थ लेकर क्रिया विचार 326
सत्ता जाति-रूप में क्रिया होती है 327
क्रिया तथा आविर्भाव एवं तिरोभाव शक्ति 328
सत्ताजातिवाद् के अनुसार क्रिया विचार 330
23. काल की अवधारणा (The Concept of Time) 337
काल और देश 338
काल शब्द-ब्रह्म की स्वतन् शक्ति है 339
भारतीय चिन्तन में काल-शक्ति 341
काल और क्रिया 343
काल-शक्ति का विवर्तन 345
काल की प्रतिबन्ध और अभ्यनुज्ञा शक्तियां 347
काल की वर्तमान, भूत, और भविष्यत् शक्तियां और क्रम 348
काल की ज़रा-शक्ति 350
काल अाैर जगत् की प्रक्रिया 352
काल अाैर विचार की प्रक्रिया 353
निष्कर्ष 353
24. पुरुष विचार का विश्लेषण (Concept of Person) 355
पुरुष विचार-विषयक पाणिनि के सूाें की व्याख्या 355
तिङ् का कर्ता एवं कर्म अर्थ 356
अचेतन के आधार पर 359
शेषे प्रथमः 359
मध्यम पुरुष के सम्बोधन अर्थ 360
25. संख्या का विचार (Concept of Number) 363
संख्या द्रव्य है या गुण 364
संख्या की व्यवहार-नित्यता 364
न्याय–वैशेषिक मतानुसार संख्या का सहायवादी सिद्धान्तः 365
भर्तृहरि का नैयायिक सहायवादी मत के खण्डन पूर्वक असहायवादी सिद्धान्तः 366
संख्या संख्येय और संख्यानपरक होती है 367
संख्या भेदक होती है 369
संख्या किस प्रकार भेदन कार्य करती है 370
संख्याएं बनती कैसे हैं 370
द्रव्यपरक या संख्येयपरक संख्याएं 372
संख्येय एवं संख्यानपरक संख्याएं 372
वाक्यपदीय और लिंगवचनविचार के संख्यान एवं संख्येयपरक 374
विचारों का अन्तर
क्या संख्या संज्ञा है? 375
तिङ् के अर्थ के रूप में संख्या का विचार 377
निष्कर्ष 378
सन्दभ-ग्रन्थ सूची 379
शब्दानुक्रमणिका 383”

Meet the Author
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    Devendra Nath Tiwari, a Professor of Philosophy and Religion, BHU is a distinguished Indian philosopher. Having deep knowledge of texts of philosophy in Sanskrit, he is known for his originality in reflecting on problems. He is widely known for his dedication to promoting the cause of philosophy in India and abroad. As a member of research committee of Go Indian Project, he visited Gothenburg University, Sweden (2012) and served Visiting Professor on ICCR Chair of Sanskrit and Indian Philosophy, Mauritius (2014-17). He is a member of the editorial/advisory board of several Indian and foreign journals and has more than 130 papers published in reputed international and national journals of philosophy. As subject expert, he delivered more than 300 lectures in different universities. He has authored The Central Problems of Bhart¦hari’s Philosophy (2008); Language, Being and Cognition (2014 and modified edition 2021); and a set of two volumes on Dynamics of the Language: The Philosophy of the World of the Words (2017-18 and revised Indian edition 2021). He is one of the two editors of Environmental Ethics: Indian Perspective (2012) and was special editor for the spring issues of the journal of East–West Thought, (vol. 5, 2015 and vol. 8, 2018) on Indian philosophy and religion.
    Books of Devendra Nath Tiwari

    “भारतीय भाषा दर्शन (Indian Philosophy of Language)”


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