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भारतीय ...
भारतीय राष्ट्रवाद (PB)
राष्ट्रवाद का अवधारणात्मक वि-औपनिवेशीकरण by: Vishwanath Mishra₹432.00
ISBN: 9788124611159
Year Of Publication: 2022
Edition: 1st
Pages : xxii, 190
Bibliographic Details : Bibliography, Index
Language : Hindi
Binding : Paperback
Publisher: D.K. Printworld Pvt. Ltd.
Size: 23
Weight: 375
इस पुस्तक में राष्ट्रवाद की पश्चिमी एवं भारतीय अवधारणा के अनुसार व्याख्या की गई है तथा दोनों में अन्तर्विरोधों एवं विशिष्टताओं को रेखांकित किया गया है। पश्चिम में परिप्रेक्ष्य रहित व्यक्ति की अवधारणा पर आधारित राष्ट्रवाद राजनीतिक राष्ट्रवाद के रूप में ही क्यों परिणत होता है और वह मानवतावाद के विरुद्ध क्यों प्रवृत्त है, यह इस पुस्तक का प्रथम प्रतिपाद्य विषय है। अद्वैत दर्शन पर आधारित सर्वात्मवादी राष्ट्रवाद मानवतावाद की ओर कैसे अग्रसर होता है यह पुस्तक का दूसरा प्रतिपाद्य विषय है। राष्ट्रवाद के प्रायः सभी प्रभावी विमर्शों की चर्चा के साथ-साथ यह पुस्तक भारतीय राष्ट्रवाद का एक अवधारणात्मक विमर्श प्रस्तुत करती हैए जिसे सर्वात्मवादी राष्ट्रवाद का नाम दिया गया है। इस पुस्तक में आधुनिकता को भारत विभाजन के मुख्य कारण के रूप में स्थापित किया गया है।
प्राक्कथन
आभार
1. राष्ट्रवाद का अवधारणात्मक वि-औपनिवेशीकरण
राष्ट्रवाद की आधुनिकता: राष्ट्रवाद से राष्ट्र का उदय
राष्ट्रवाद की प्राचीनता: राष्ट्र से राष्ट्रवाद का उदय
राष्ट्रवाद: काल्पनिक समूह या वास्तविक
राष्ट्रवाद: राष्ट्रीयताओं का अन्तर्द्वन्द्व
2. ध्वज, नाम, जाति और राष्ट्रीय अस्मिता
सनातन परम्परा का राष्ट्र विमर्श
अम्बेडकर एवं सावरकर
जाति विभाजित समाज का राष्ट्रवाद
3. इस्लाम का शरीर, वेदान्त की आत्मा और यूरोप का मन
ज्योतिबा फुले
स्वामी विवेकानन्द
जवाहरलाल नहरू
4. सर्वात्मवादी राष्ट्रवाद की अन्तर्यात्रा
रबीन्द्रनाथ टैगोर
महर्षि अरविन्द घोष
महात्मा गाँधी
5. स्वातन्त्र्योत्तर भारत में राष्ट्रवाद
विभाजन के बाद का विभाजन
साम्प्रदायिकता और आधुनिकता
विभाजन के असली गुनहगार
6. अस्तित्व संकट, आधुनिकता और राष्ट्रवाद
आत्मा का शरीर में रूपान्तरण
आधुनिकता का संक्रमण
शब्द व्याख्या
सन्दर्भ ग्रन्थ‐सूची
शब्दानुक्रमणिका
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