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Aryabhata Krita: Aryabhatiya (आर्यभट कृत: आर्यभटीय)

by: Kedar Nath Shukla

$20.00

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Details

ISBN: 9788124611678
Year Of Publication: 2022
Edition: 1st
Pages : xvi, 71
Language : Hindi
Binding : Paperback
Publisher: D.K. Printworld Pvt. Ltd.
Size: 22
Weight: 140

Overview

आर्यभटीय प्राचीन भारत के महान् ज्योतिषविद् एवम् गणितज्ञ आर्यभट (476-550) की प्रमुख रचना है। आर्या—छन्द में रचित 121 श्लोकों से युक्त चार अध्यायों की आर्यभटीय भारतीय गणित एवम् खगोलिकी का एक सैद्धान्तिक ग्रन्थ हैए जिसका व्यापक प्रभाव मध्यकालीन भारत के अतिरिक्त अरब देशों में भी रहा।
आर्यभट ने सौर–मण्डल के भूकेन्द्रिक सिद्धान्त को प्रतिपादित किया हैए जिसमें सूर्य और चन्द्रमा अपने-अपने अधिचक्रों पर चक्कर लगाते हुए पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं। ग्रहण के स्वरूप तथा उसकी गणना.विधि प्रस्तुत की गई है। वह पहले खगोलविद् रहे जिन्होंने पृथ्वी की अपने अक्ष पर भ्रमण करने की अभिकल्पना की है। दशमलव के चार अंकों तक पाई (π) का शुद्ध मान ज्ञात किया है। आर्यभट ने अंकों के प्रदर्शन के लिए अक्षरों का प्रयोग कियाए लेकिन इसकी क्लिष्टता के कारण यह प्रचलित नहीं हो सका। संख्याओं के वर्गमूल एवम् घनमूल ज्ञात करने की विधि या अनिधार्य समीकरणों के हल की कुट्टक विधि को आजकल क्रिप्टोलॉजी में आर्यभट एल्गोरिथम के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है।
डॉ˚ केदारनाथ शुक्ल द्वारा आर्यभटीय के संस्कृत श्लोकों का हिन्दी रूपान्तरण एवम् आधुनिक पदों में उनकी सरल व्याख्या प्रस्तुत करने का एक लघु प्रयास किया गया है। प्राचीन भारतीय गणित एवम् खगोलिकी की यह सर्वोत्कृष्ट कीर्तिए आशा हैए सुविज्ञ छात्रों एवं जन.मानस के लिए हितकर होगी।

Contents

प्राक्कथन

अध्याय 1: गीतिकापाद: (गीतिका)

मङ्गलाचरणम्
संख्याविन्यासे परिभाषा (अंक-विन्यास की परिभाषा)
कक्ष्यायोजनप्रमाणम् (ग्रहों की कक्षा)
भूम्यादेर्योजनप्रमाणम् (ग्रहों का व्यास निर्धारण)
ग्रहापक्रम (क्रान्तियाँ)
पात मन्दोच्चभागा: (ग्रहों के पात एवम् मन्दोच्च का निर्धारण)
मन्द-शीघ्रोच्चवृत्तानि (मन्द एवम् शीघ्र वृत्तों की परिधि)
भूवायुकक्ष्याप्रमाणम् (भू एवम् वायु की कक्षा निर्धारण)
महाज्या: (कलार्द्धज्या)
दशगीतिकापरिज्ञानफलम् (दशगीतिका का उद्येश्य)

अध्याय 2: गणितपाद (गणित)

मंगलाचरणम्
वर्गस्वरूपम् (वर्ग एवम् वर्ग करने की विधि)
घनस्वरूपम् (घन की परिभाषा एवम् घन ज्ञात करने की विधि)
वर्गमूलम् (वर्गमूल ज्ञात करने की विधि)
घनमूलम् (घनमूल ज्ञात करने की विधि)
त्रिभुजक्षेत्रफलम् (त्रिभुज का क्षेत्रफल)
घनत्रिभुजक्षेत्रफलम् (त्रिभुजाकार घन या पिरामिड का क्षेत्रफल)
वृतक्षेत्रफलम् (वृत्त का क्षेत्रफल)
घनगोलफलम् (गोल पिण्ड का क्षेत्रफल)
विषमचतुरश्रादेरू क्षेत्रफलम् (समलम्ब चतुर्भुज का क्षेत्रफल)
सर्वक्षेत्रफलम् (सभी क्षेत्रों का क्षेत्रफल)
व्यासार्धतुल्यज्या (व्यासार्द्ध के तुल्य ज्या)
ज्यापरिकल्पना (ज्यामितीय विधि से अर्द्धज्या की गणना)
खण्डज्या (अर्धज्याओं का क्रमागत अन्तर)
वृत्तादिपपरिकल्पना (वृत्त आदि की परिकल्पना)
इष्टवृत्तविष्कम्भ (इष्ट वृत्त की त्रिज्या की गणना)
शङ्कुछाये (शङ्कु की छाया की गणना)
कोटि.भुजौ (लैम्प-पोस्ट की ऊँचाई)
कर्ण:, अर्धज्या (कर्ण एवम् अर्द्धज्या के वर्गों का सूत्र)
शरानयनम् (सम्पाती वृत्त के मध्य की जीवा)
श्रेणी (समानान्तर श्रेणी के योग का सूत्र)
गच्छानयनम् (समानान्तर श्रेणी के पदों की संख्या)
सङ्कलितसङ्कलितधनम् (चितिघन श्रेणी (1, (1+2), (1+2+3)) … का योग)
वर्ग-घनयो: सङ्कलितम् (वर्ग और घन श्रेणी का योग)
राशिद्वयस्यसंवर्गे उपयान्तरम् (दो राशियों के योग के वर्ग से उनके गुणनफल का आकलन)
राशिसंवर्गाद्राश्योरानयनम् (गुणनफल एवम् अन्तर से राशियों का आकलन)
मूलफलम् (मूल धन पर ब्याज का आकलन)
त्रैराशिकम् (तीन राशियों का सूत्र)
भिन्नत्रैराशिकम् (भिन्न राशियों की गणना)
व्यस्वविधि: (उत्क्रमण की विधि)
सर्वधनम् (सर्व से एक कम राशि के योग से अज्ञात राशि की गणना)
अव्यक्तमूल्यसमीकरणम् (अव्यक्त मान का समीकरण)
ग्रहान्तराद् ग्रहयोगकाल (ग्रहों के बीच की दूरी से उनके योग काल की गणना)
कुट्टाकारगणितम् (कुट्टक गणित)

अध्याय 3: कालक्रियापाद: (समय की गणना)

कालविभाग: (समय का विभाजन)
आर्क्षदिवसविनाडिकायाः (विनाडिका का कालमान् एवम् क्षेत्रविभाग)
ग्रह योगरू व्यतीपातश्च (ग्रह योग एवं व्यतीपात)
उच्चनीचादिपरिवर्तरूए गुरोब्द: (उच्च-नीच वृत्तों में परिभ्रमणए गुरु वर्ष)
सौरचान्द्रादिमानम् (सौर एवम् चान्द्र दिवस)
अधिकमासावमदिनानि (अधिमास तथा सावन दिन आदि)
सम्वत प्रमाणम् (मानवए पितृ एवम् देव वर्ष का मान)
कल्प प्रमाण (ग्रहों का युग काल एवम् ब्रह्मदिन काल)
उत्सर्पिण्यादिविभागरू (युग में उत्सर्पिणी-अपसर्पिणी आदि विभाजन)
आर्यभटीयप्रणयनकाल: (आचार्य एवम् उनकी आर्यभटीय का रचना काल)
युगाद्यारम्भकाल: (युग आदि का प्रारम्भ)
ग्रहाणां समगतित्वम् (ग्रहों की गति का समान होना)
हाणां योजनात्मकं समगतित्वं (ग्रहों की शीघ्र एवम् मन्द गति का कारण)
ग्रहाणां कलात्मकं भिन्नगतित्वम् (ग्रहों की रैखिक गति का असमान विभाजन)
ग्रहकक्ष्याक्रमरू (ग्रहों की कक्षा का क्रम)
होरा-दिनाद्यधिपा: (दिवस एवम् होरापति का निर्धारण)
ग्रहभ्रमण प्रकार: (भिन्न-भिन्न ग्रह गति)
प्रतिमण्डलसंस्थानम् (उत्केन्द्र वृत्त की स्थिति एवम् प्रमाण)
स्फुटमध्यमोन्तरम् (अधिचक्र के माध्यम से ग्रह.गति का स्पष्टीकरण)
ग्रहभ्रमण प्रकार: (विविध प्रकार के ग्रहों की गति)
नीचोच्चवृत्ते मध्यग्रह (उच्च-नीच वृत्त में भ्रमण तथा मध्य स्थिति)
मन्दशीघ्रयोःऋणधनविधि: (मन्दफल और शीघ्रफल का योग और अन्तर)
ग्रहस्फुटानयनम् (शनि, गुरु, मंगल की स्थिति में संशोधन)
बुधशुक्रयो:स्फुट (बुध-शुक्र के मध्य से मन्द और शीघ्र फलों का संशोधन)
भूताराग्रहान्तरालम् (भू और ताराग्रहों के बीच अन्तराल)

अध्याय 4: गोलपादरू (खगोल)

अपमण्डलम् (खगोल में क्रान्ति वृत्त)
अपमण्डलचारिणो ग्रहा: (ग्रहों की क्रान्ति वृत्त पर गति)
विक्षेपमण्डलं ग्रहाणां पाताश्च (चन्द्र एवम् ग्रहों की गति)
चन्द्रादिनाम् उदयास्तमय: (ग्रहों की दृश्यता)
ग्रहादीनां प्रकाशहेतु: (भू तथा अन्य ग्रहों के दीप्तिमान होने का कारण)
भूगोलावस्थानम् (पृथ्वी की आकाश में स्थिति एवम् इसकी रचना)
भूगोलपृष्ठे प्राणिनिवास: (पृथ्वी के पृष्ठ पर प्राणियों का निवास)
कल्पे भुवरू वृद्धिह्रासौ (कल्प में पृथ्वी के आकार में वृद्धि और ह्रास)
भूभ्रमणम् (पृथ्वी के चक्रण से नक्षत्रों की प्रत्यक्ष गति)
भपञ्जर भ्रमणम् (प्रवाह वायु द्वारा भ्रमणशीलता)
मेरुप्रमाणम् (मेरु पर्वत का वर्णन)
मेरुबडवामुखावस्थानम् (मेरु तथा बडवामुख)
लङ्कादिचतुर्नगर्यरू (लङ्का के चारों तरफ भू-परिधि पर मुख्य नगर)
लङ्कोज्जयिन्यो रव स्थानम् (लङ्का और उज्जयिनी की स्थितिद्ध)
भचक्रस्यदृश्यादृश्यभागौ (भू-पृष्ठ का दृश्य एवम् अदृश्य भाग)
भचक्रे देवासुरदृश्यप्रदेश: (नक्षत्र मण्डल का भगण)
देवादीनां दिन प्रमाणम् (देवादि के लिए दिनमान)
खगोल कल्पना (नक्षत्र मण्डल की कल्पना)
दृष्टृवशाद् गोलकल्पना (खगोल में प्रेक्षक की स्थिति)
दृङ्मण्डलं दृक्क्षेपमण्डलं च (प्रेक्षक का दृङ्मण्डल तथा दृक्क्षेपमण्डल)
गोलभ्रमणोपाय: (गोल यन्त्र)
अक्षज्या लम्बकश्च (खगोलीय ज्यामिति)
स्वहोरात्रविष्कम्भ: (होरा वृत्त की त्रिज्या)
लङ्कोदयप्राणा: (लङ्का में राशियों का उदय)
क्षितिज्या चरज्या च (दिनदृरात्रि की क्षय.वृद्धि का आकलन)
स्वदेशराश्युदय: (स्वदेश में राशियों का उदय)
इष्टकालशङ्कु (शङ्कु से इष्ट काल की गणना)
शङ्क्वग्रम् (शङ्कु के अग्र की गणना)
अर्काग्रा (सौराग्र)
समशङ्कु: (सम मण्डल में सौर-शङ्कु)
मध्याह्न शङ्कु (मध्याह्न शङ्कु तथा छाया)
दृकक्षेपज्या (दृकक्षेप की गणना)
दृग्गतिज्या (दृग्गति ज्या की गणना)
आक्षदर्शनसंस्कार: (चन्द्रादि की दृश्यता में संशोधन)
अयन दृक्कर्म (चन्द्र के अयन क्रम का संशोधन)
ग्रहण स्वरूपम् (सूर्य और चन्द्र ग्रहण का स्वप)
ग्रहण कालः (ग्रहण काल)
भूच्छायादैर्ध्यम् (भू-छाया की परिमाप)
छायाबिम्ब (चन्द्र कक्षा में भू-छाया)
स्थित्यर्धरू (चन्द्र ग्रहण की अर्द्ध स्थिति)
विमर्दार्धकालरू (चन्द्र ग्रहण का अर्द्ध-विमर्द काल)
ग्रस्तप्रमाणम् (खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण)
इष्टकालग्रास: (तात्कालिक ग्रास का परिमाप)
अक्षवलनम्, आयनवलनम् च (स्पर्श और मोक्ष की गणना)
ग्रहणवर्ण: (ग्रहण का रंग)
सूर्य ग्रहणे विशेष: (सूर्य ग्रहण का पूर्वानुमान)
ग्रहादिनां दृकसंवाद (प्रेक्षण द्वारा ग्रहों का निर्धारण)
शास्त्रमूलम् (शास्त्र का मूल)
उपसंहार (उपसंहार)

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