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अहाेरा...
अहाेरात्रवादविमर्श
by: Santosh Kumar Shukla , Lakshmi Kant Vimal , Mani Shankar Dwivediपं˚ मधुसूदन ओझा द्वारा प्रणीत सृष्टि प्रतिपादक अहोरावाद नामक ग्रन्थ का इस पुस्तक में विमर्श प्रस्तुत किया गया है। जिसमें अहोरावाद के विविध विषयों को आधार बनाकर आमिन् त विद्वानों द्वारा लिखे गये विमर्शात्मक शोधपत्रों का संकलन तथा अहोरात्रवाद ग्रन्थ की मूल प्रतिलिपि को समाहित किया गया है।
$40.00
ISBN: 9788124612538
Year Of Publication: 2024
Edition: 1st
Pages : xx, 294
Bibliographic Details : Bibliography, Index
Language : Sanskrit, Hindi
Binding : Hardcover
Publisher: Shri Shankar Shikshayatan
Size: 23
Weight: 750
“अहोरात्र शब्द अहः एवं राि इन दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘अहः च रािः च’ ऐसा विग्रह द्वारा द्वन्द्व समास होकर ‘अहोरा’ शब्द निष्पन्न होता है। सृष्टि की उत्पत्ति विषयक अनेक सिद्धान्त आचार्यों द्वारा दिये गये हैं। उन सिद्धान्तों में से सृष्टि सम्बन्धी अहोराविषयक सिद्धान्त अहोरावाद के नाम से जाना जाता है। ऋग्वेद के “नासदीय सूक्त” में सृष्टिविषयक अन्य सिद्धान्तों के साथ अहोरावाद का भी उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अघमर्षण सूक्त (१०.१९०.३) में कहा गया है कि निमेष मा में ही जगत् को वश में करने वाले परमपिता ने दिन और रात का विधान किया। श्रीमद्भगवद्गीता (८.१७) के अनुसार ब्रह्मा का जो एक दिन है, उसको एक हजार चतुर्युग तक की अवधिवाला और राि को भी एक हजार चतुर्युग तक की अवधि के रूप में जो जानते हैं, वे योगीजन काल के तत्त्व को जानने वाले हैं। बृहदारण्यकोपनिषद् में भी सृष्टि प्रक्रिया के प्रसंग में अहोरा शब्द का अनेक प्रयोग मिलता है। इस उपनिषद् के प्रारम्भ में यज्ञसम्बन्धी अश्व को आधार बना कर उसके अवयव का वर्णन किया गया है। तदनुसार उस यज्ञीय अश्व के सामने महिमारूप से दिन प्रकट हुआ। राि इसके पीछे महिमा रूप से प्रकट हुई। विद्यावाचस्पति पं˚ मधुसूदन ओझा ने सृष्टिविषयक अहोरावाद मत के विषय में विविध वैदिक सन्दर्भों का आलोकन कर अहोरावाद नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया है। यह ग्रन्थ कुल १२ अधिकाराें में विभक्त है। प्रतिज्ञा एवं उपसंहार को छोड़कर इस ग्रन्थ के १० अधिकाराें में ज्ञान-अज्ञान, शुक्ल-कृष्ण, प्रकाश-अन्धकार, भाव-अभाव, सृष्टि-प्रलय, द्यावा-पृथिवी, ऋत-सत्य, सप्ताह, यज्ञ और चातुर्हो ये दस विषय वर्णित हैं। अहोरावादविमर्श नामक इस ग्रन्थ में विद्यावाचस्पति पं˚ मधुसूदन ओझाजी के द्वारा प्रणीत सृष्टि प्रतिपादक अहोरावाद नामक ग्रन्थ का विमर्श प्रस्तुत किया गया है। जिसमें अहोरावाद के विविध विषयों को आधार बनाकर आमिन् त विद्वानों के द्वारा लिखे गये विमर्शात्मक शोधपत्रों का संकलन तथा अहोरात्रवाद ग्रन्थ की मूल प्रतिलिपि को कारिकानुक्रमणिका एवं शब्दानुक्रमणिका के साथ समाहित किया गया है।”
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