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Dhyan-Yoga

Kyun aur Kaise? by: Ajay Bhardwaj , Vijay Kumar Singh

405.00

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Details

ISBN: 9788124611173
Year Of Publication: 2022
Edition: 1st
Pages : xvi, 220
Bibliographic Details : Bibliography
Language : Hindi
Binding : Paperback
Publisher: D.K. Printworld Pvt. Ltd.
Size: 22
Weight: 300

Overview

ध्यान-योग ध्यान के सैद्धान्तिक, व्यावहारिक व वैज्ञानिक पहलुओं को प्रकाशित करने वाली एक अद्भुत व अनमोल पुस्तक है। ध्यान की अवधारणा, योग शास्त्रें में ध्यान का स्वरूप, ध्यान का आध्यात्मिक महत्त्व, ध्यान की तैयारी एवं ध्यान द्वारा शरीर व मन पर पड़ने वाले प्रभाव का वैज्ञानिक विवेचन-विश्लेषण आदि बिन्दुओं को इस पुस्तक में बहुत ही सहजता, सरलता व सुन्दरता के साथ प्रस्तुत किया गया है। नियमित रूप से ध्यान करने हेतु विविध प्रकार की ध्यान की विधियाँ व अभ्यास एवं ध्यान की वैज्ञानिकता इस पुस्तक कोे ध्यान पर लिखी गई अन्य पुस्तकों से न सिर्फ अलग करती है बल्कि इसकी गुणवत्ता में अभिवृद्धि करने के साथ-साथ इसकी सुन्दरता में चार चाँद भी लगाती है। आज भौतिकवादी और भोगवादी जीवन-दृष्टि, भौतिकता की अन्धी दौड़ व चकाचौंध ने मनुष्य के स्वास्थ्य, सुख-चैन व शान्ति को छीन लिया है। आज सम्पूर्ण मानव समाज को यौगिक जीवन-दृष्टि, आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि की परम आवश्यकता है। इस दृष्टि से यह पुस्तक और भी अधिक उपयोगी, महत्त्वपूर्ण एवं प्रासंगिक है। विकृत जीवन-शैली के कारण नानाविध शारीरिक, मानसिक व मनोकायिक रोगों से पीड़ित, परेशान लोगों के लिए तो यह पुस्तक एक अमृत-रसायन व संजीवनी है। क्योंकि यह पुस्तक स्वस्थ जीवन-शैली, आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि एवं नियमित रूप से ध्यान के अभ्यास द्वारा स्वस्थ, सुन्दर व सुखी जीवन जीने की राह दिखाती है। निराशा, अवसाद, तनाव, कुण्ठा, चिन्ता, उद्विग्नता आदि मानसिक समस्याओं के समाधान हेतु यह एक रामबाण औषधि है। जहाँ यह पुस्तक एक ओर योग-साधकों, अध्यात्म-प्रेमियों, आत्मानुभूति, ब्रह्मानुभूति व मोक्ष के इच्छुक मुमुक्षुओं, व जिज्ञासुओं के लिए मार्गदर्शिका और पथ-प्रदर्शिका है तो वहीं दूसरी ओर शैक्षणिक जगत् से जुड़े विद्यार्थियों, शोधार्थियों व प्राध्यापकों के लिए एक प्रामाणिक टेक्स्ट बुक भी है, ग्रन्थ भी है। जो इस पुस्तक को पढ़कर अपने जीवन में नित्य ध्यान का अभ्यास करेंगे उनका चित् अपूर्व आनन्द, उल्लास और उमंग से भर जाएगा। वे एक नूतन जीवन-दृष्टि, आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि पाकर परम आनन्द और परम सौन्दर्य के एक अज्ञात आयाम में उड़ान भरने लगेंगे।

Contents

भूमिका
1.ध्यान: अर्थ, अवधारणा एवं महत्त्व
ध्यान के अंग
ध्यान के पाँच अंग
ध्यान की आवश्यकता एवं महत्त्व
ध्यान-साधना से एकाग्रता की प्राप्ति
ध्यान-योग के द्वारा ऊर्जा के बिखराव पर नियन्त्रण
एकाग्रता साधन है साध्य नहीं
ध्यान-योग के द्वारा आत्मबल एवं संकल्प-बल का संवर्धन
शान्ति और आनन्द का अनुभव
मन की मुक्ति और प्रभुत्व
ध्यान-योग के द्वारा आत्मबोध एवं आत्मसाक्षात्कार
2.योगण्योग शास्त्रें में ध्यान का स्वरूप
वेदों में ध्यान
वेदों में ध्यान का स्वरूप एवं ध्यान की पद्धतियां
नाड़ियों में ध्यान
ज्योतिर्मय ध्यान
अग्नि-मन्थन-रूप ध्यान
धनुर्धारी सदृश ध्यान विधि
अन्तर्नादमय ध्यान
ध्यान से प्राप्त सामर्थ्य एवं लाभ
उपनिषदों में ध्यानध्यान बिन्दूपनिषद् में ध्यान की महिमा तथा स्वरूप
जाबालदर्शनोपनिषद् में ध्यान का स्वरूप
नादबिन्दूपनिषद् में ध्यान
नादानुसन्धान
नाद में मन का लय
श्वेताश्वतरोपनिषद् में ध्यान-योग
ध्यानाभ्यास की विधि
ध्यानसिद्धि के लक्षण
भगवत्प्राप्ति एवं दुःखों की निवृत्ति
गीता में ध्यान
ध्यान का स्वरूप
ध्यानाभ्यास की विधि
परमात्म-चिन्तन द्वारा च×चल मन पर नियन्त्रण
ध्यान का फल
पुराणों में ध्यान
योग-दर्शन में ध्यान
पात×जल योगदर्शनम्
ध्यान क्या है?
ध्यान की विधि एवं लाभ
¬कार का जप एवं ध्यान
ध्यान से विघ्नों का नाश
ज्योति का ध्यान
वीतराग पुरुषों का ध्यान
शिव संहिता
वसिष्ठ संहिता
ध्यान: अर्थ एवं प्रकार
प्रथम सगुण ध्यान
द्वितीय सगुण ध्यान
तृतीय सगुण ध्यान
चतुर्थ सगुण ध्यान
प×चम सगुण ध्यान
ध्यान के फल
ध्यान का फल
ध्यान से समाधि की ओर
हठयोग-प्रदीपिका
ध्यान की विधियां
ध्यान का फल
नादानुसन्धान
नादाभ्यास का प्रभाव
घेरण्ड संहिता में ध्यान
ध्यान का स्वरूप
3.ध्यान का विज्ञान
ध्यान द्वारा आधि-व्याधियों का समग्र उपचार
चिकित्सा क्षेत्र में ध्यान-योग का प्रवेश
ध्यान-योग के नूतन अभिनव आयाम
वेदना निवारण में ध्यान की प्रभावी भूमिका
ध्यान के मनोशारीरिक प्रभाव
ध्यान से शरीरक्रियात्मक परिवर्तन
ध्यान एवं चयापचय क्रिया
ध्यान एवं स्वैच्छिक तन्त्रिका तन्त्र
ध्यान और अन्तःस्रावी ग्रंथियाँ
ध्यान और केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र
सेरेब्रल रक्त प्रवाह और मस्तिष्कीय क्रियात्मकता
ध्यान एवं रोग-प्रतिरोधक क्षमता
4.ध्यान की तैयारी
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
योगाभ्यास से प्राप्त यौगिक शक्तियां
ध्यान के लिए आवश्यक आन्तरिक एवं बाह्य अवस्थाएँ
ध्यान की कठिनाइयां
ध्यान की कसौटी
षट्कर्म
कपालभाति प्राणायाम
5.ध्यान हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण नियम-निर्देश
स्थान
काल
आसन
समय
प्राणायाम
शुद्ध आहार-विहार
स्नान
दृढ़ संकल्प एवं नियमितता
6.ध्यान की तैयारी हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण योगाभ्यास
अभ्यासियों के लिए सामान्य निर्देश
आसनों का अभ्यास
सूर्य नमस्कार
अभ्यास काल
तैयारी
स्थिति 1: प्रणामासन
स्थिति 2: हस्त उत्तानासन
स्थिति 3: पाद हस्तासन
स्थिति 4: अश्व संचालन
स्थिति 5: पर्वतासन
स्थिति 6: अष्टांग नमस्कार
स्थिति 7: भुजंगासन
स्थिति 8: पर्वतासन
स्थिति 9: अश्व संचालनासन
स्थिति 10: पाद हस्तासन
स्थिति 11: हस्त उत्तानासन
स्थिति 12: प्रणामासन
अवधि
सीमाएं
प्रज्ञा-योग व्यायाम
ध्यानात्मक आसनों का अभ्यास
ध्यानाभ्यास हेतु महत्त्वपूर्ण आसन
ध्यानाभ्यास हेतु कुछ सरल आसन
सुखासन
अर्द्ध-पप्रासन
पप्रासन
सिद्धासन
स्वस्तिकासन
वज्रासन
ध्यानाभ्यास में सहायक प्राणायाम
प्राणायाम अभ्यास के सामान्य दिशा-निर्देश अभ्यास हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण प्राणायाम
नाड़ीशोधन प्राणायाम
शीतली प्राणायाम
शीतकारी प्राणायाम
भस्त्रिका
कपालभाति
भ्रामरी प्राणायाम
बन्ध
जालन्धर बन्ध
मूल बन्ध
उड्डियान बन्ध
महाबन्ध
मुद्रा
ज्ञान-मुद्रा का अभ्यास
चिन् मुद्रा का अभ्यास
त्रटक का अभ्यास
7.ध्यान का अभ्यास
कार का ध्यान
वीतराग पुरुषों का ध्यान
भगवान् बुद्ध का ध्यान
आचार्य शंकर का ध्यान
रामकृष्ण परमहंस का ध्यान
युगट्टषि वेदमूर्ति श्रीराम शर्मा आचार्य जी के अवतरण व आत्म-साक्षात्कार का ध्यान
स्थूल ध्यान
हृदय में गुरु के स्थूल रूप पर ध्यान
सहड्डार में गुरु के स्थूल रूप पर ध्यान
ज्योति ध्यान
सूक्ष्म ध्यान
अभेद ध्यान
भेद ध्यान
ज्योतिर्मय आत्मा का ध्यान
उदीयमान सूर्य का ध्यान
दीपक का ध्यान
हिमालय का ध्यान
दर्पण में ध्यान
षट्-चक्र वेधन का ध्यान
षट्चक्रों का वेधन
ध्यान विधि
सो{हं ध्यान (अजपा-जप)
आत्मानुभूति ध्यान
मनोमय कोश को व्यवस्थित करने के लिए ध्यान की कुछ महत्त्वपूर्ण विधियाँ
आत्मस्वरूप-आत्मदेव का ध्यान
आत्मदेव के निराकार ध्यान का अभ्यास
आत्मदेव के साकार ध्यान का अभ्यास
तेजोबल का ध्यान
आज्ञा चक्र जागरण का ध्यान
जप के साथ पयपान की ध्यान-साधना
शक्ति संचार की ध्यान-साधना
ऊर्जा अनुदान की ध्यान-साधना
ज्योति अवतरण ध्यान-साधना
ज्योति-पुज सविता की ध्यान-साधना
दिव्य अनुदान की ध्यान-साधना
प्राण संचरण (कुण्डलिनी स्फुरण) ध्यान
ज्योति अवतरण (दिव्य-दृष्टि जागरण) ध्यान
रसवर्षण (प्रभु मिलन) ध्यान
सूक्ष्म शरीर से गायत्री-तीर्थ शान्तिकुंज में उपस्थिति का ध्यान
ध्यानाभ्यास
प्राणाग्नि-कुण्डलिनी का ध्यान
दिव्य-दृष्टि/प्रकाश-ज्योति का ध्यान
रसानुभूति अमृत-वर्षा-ध्यान
सम्मिश्रित ध्यान-साधना
इष्टदेव का ध्यान
अभ्यास विधि
बौद्ध-योग के पाँच ध्यान
विपश्यना ध्यान
ध्यान का प्रथम चरण (अभ्यास-विधि)
ध्यान का द्वितीय चरण
ध्यान का तृतीय चरण
फलश्रुतियां

प्रेक्षाध्यान
प्रेक्षाध्यान का अर्थ
प्रेक्षाध्यान का लक्ष्य
प्रेक्षाध्यान की पूर्व तैयारी
ध्यान का पहला चरण µ कायोत्सर्ग
ध्यान का दूसरा चरणµ अन्तर्यात्र
ध्यान का तीसरा चरणµ श्वास प्रेक्षा
ध्यान का चौथा चरणµ शरीर प्रेक्षा
ध्यान का पाँचवा चरणµ चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा
ध्यान का छठा चरणµ लेश्या ध्यान
ध्यान का सातवां चरणµ ज्योति केन्द्र प्रेक्षा
समापन-विधि

सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची

Meet the Author
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Dr Ajay Bhardwaj got his Bachelors in English Honours from Magadh University, Bodha Gaya and did his Postgraduation in English from S.K. University, Dumka, Jharkhand and subsequently took two more postgraduate degrees in Human Consciousness and Yogic Science, and Journalism and Mass Communication from Dev Sanskriti University. He got his PhD on “A Study of Yoga Related Coverage in Print Media”. Presently, Dr Bhardwaj is working as a Senior Assistant Professor and as a Coordinator Media Studies at Dev Sanskriti University, Uttarakhand. He has presented numerous papers in national and international seminars.
Books of Ajay Bhardwaj
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1963
Dr. Vijay Kumar Singh, a Reader in the Department of Chinese and Tibetan Language, Panjab University, did his Masters in Buddhist Studies from the University of Delhi and was awarded PhD in Tibetan Buddhism from Panjab University, Chandigarh. He has written several papers on Tibetan Buddhism. These have been published in national and international journals and several books. He remains one of the very few scholars in the field of Lam Rim Teachings of Tibetan Buddhism. Lam Rim teachings are considered to be the base of Buddhist scriptures that reached Tibet from India during the introduction of Buddhism in Tibet in 7th century. In Tibetan language, Lam means path and Rim is graded. Hence, the Lam Rim teaching is considered to be of Indian origin, but developed to its present extent by the Tibetan masters in their own environment with local flavours and soon it earned the respect and command of all the sects and sub-sects of Buddhism in Tibet.
Books of Vijay Kumar Singh

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